यह विज्ञान की वह शाखा है जिसमें हम जीवों, जैविक प्रक्रियाओं अथवा उत्पादों की विनिर्माण पद्धतियों का प्रयोग मानव जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के उद्देश्य से करते हैं।
जैव-प्रौद्योगिकी एवं इसके अनुप्रयोग
जैव-प्रौद्योगिकी के प्रकार
हरित जैव-प्रौद्योगिकी
- कृषि से जुड़ी क्रियाओं में प्रयोग होती है।
- उपयोग के तीन प्रमुख क्षेत्र पादप उत्तक संवर्धन, पादप आनुवांशिकी अभियांत्रिकी एवं पादप आण्विक संकेतक-सहायक प्रजनन हैं।
- पौधों को कीटों और सूखे से प्रभावित होने से बचाने के लिए जैवप्रौद्योगिकी का उपयोग होता है।
- बी.टी. कॉटन गोलकृमि सहनशील पौधे का एक उदाहरण है। यह एक पराजीनी (ट्रांसजैनिक) पौधा भी है।
लाल जैव-प्रौद्योगिकी
- चिकित्सीय विज्ञान, अभिनव दवाईयां एवं उपचार से संबंधित है।
- उपयोग : वैक्सीन और एंटीबायोटिक्स के उत्पादन में, पुनरोत्पादन उपचार, जीन थैरेपी, स्टेम सेल थैरेपी आदि लाल जैव-प्रौद्योगिकी के कुछ अनुप्रयोग हैं।
नीली जैव-प्रौद्योगिकी
- समुद्री संसाधनों और ताजे पाने के जीवों का प्रयोग उत्पादों एवं औद्योगिक अनुप्रयोग में किया जाता है।
श्वेत जैव-प्रौद्योगिकी
- औद्योगिक क्रियाओं में उपयोगी है।
- औद्योगिक उत्प्रेरक के रूप में किण्वन, फंफूदी, जीवाणु, खमीर आदि का प्रयोग विभिन्न सामानों के उत्पादन में होता है। ये श्वेत जैव-प्रौद्योगिकी के उदाहरण हैँ।
पीली जैव-प्रौद्योगिकी
- कीटों से जुड़ी जैव-प्रौद्योगिकी।
- यह खाद्य उत्पादन में जैव प्रौद्योगिकी के प्रयोग को भी इंगित करती है।
धूसर जैव-प्रौद्योगिकी
- जैव-प्रौद्योगिकी का पर्यावरण अनुप्रयोगों, जैवविविधता बनाए रखने और प्रदूषक तत्त्वों को हटाने में उपयोग होता है।
भूरी जैव-प्रौद्योगिकी
- सूखा और मरुस्थलीय क्षेत्रों के प्रबंधन से संबंधित है।
- सूखारोधी बीजों के निर्माण, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, शुष्क स्थलाकृति के लिए उपयुक्त कृषि तकनीकों का विकास भूरी जैवप्रौद्योगिकी के कुछ उदाहरण हैं।
बैंगनी जैव-प्रौद्योगिकी
- जैव-प्रौद्योगिकी से जुड़े कानूनों, नैतिक एवं दार्शनिक मुद्दों से संबंधित है।
काली जैव-प्रौद्योगिकी (डार्क बायोटेक्नोलॉजी)
- जैविक आतंकवाद, जैविक हथियारों और जैविक युद्ध जिसमें बीमारियों, मौत और अपंगता फैलाने के लिए सूक्ष्मजीवाणु एवं विषैले तत्त्वों का प्रयोग होता है।
जैव-प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग :-
- चिकित्सा
- बायोफार्मास्युटिकल्स
- जीन थेरेपी
- फार्माकोजेनोमिक्स
- आनुवांशिक परीक्षण
- कृषि
- आनुवांशिक संशोधित फसल
- जैवईंधन
- पादप एवं जंतु प्रजनन
- बायोफोर्टिफिकेशन (जैव सुरक्षा)
- एंटीबायोटिक्स
- अजैविक दबाव रोधी
- पर्यावरण
- बायोमेकर
- जैवऊर्जा
- बायोरिमेडिएशन
(i) माइकोरिमेडिएशन
(ii) फाइटोरिमेडिएशन
(iii) माइक्रोबियल रिमेडिएशन - जैवरूपांतरण
- उद्योग
- खाद्य प्रसंस्करण
- किण्वन प्रक्रिया
- प्रोटीन इंजीनियरिंग
हाल में विकास
- मानव जीनोम कार्यक्रम
- त्रिसंतति संतान
- आनुवांशिक संशोधित सरसों
- जीन थेरेपी
- स्टेम सेल थेरेपी
सरकारी नीतियां
- राष्ट्रीय जैवप्रौद्योगिकी विकास रणनीति 2015-2020 (NBDS)
- राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन
अनुप्रयोग :
1) औषधियां
- बायोफार्मास्युटिकल्स: बायोफार्मास्युटिकल्स अथवा जिसे जैविक औषधि उत्पाद ने नाम से भी जाना जाता है, एक फार्मास्युटिकल्स औषधि उत्पाद है जिसे जैविक स्त्रोतों से निर्मित अथवा निष्कर्षित अथवा अर्ध-संश्लेषित किया जाता है।
- जीन थेरेपी : जीन थेरेपी में रोग का उपचार करने के लिए न्यूकिल्क अम्ल को संतति कोशिकाओं में चिकित्सीय हस्तांतरण किया जाता है।
- फार्मासोजेनोमिक्स: फार्मासोजेनोमिक्स एक तकनीक है जो विश्लेषण करती है कि जेनेटिक मेकअप औषधियों के प्रति व्यक्ति से व्यक्ति प्रतिक्रिया को प्रभावित करती है। यह औषधि की प्रभाविकता अथवा विषाक्तता के साथ जीन अभिव्यक्ति अथवा एकल-नाभिकीय बहुरूपताओं से जोड़कर रोगी में औषधि की प्रतिक्रियाओं पर आनुवांशिक विभिन्नता के प्रभाव से संबंधित है।
- आनुवांशिक परीक्षण: आनुवांशिक परीक्षण किसी जन्मजात रोग के खतरों का आनुवांशिक निदान संभव बनाती है। इसका प्रयोग किसी बच्चे के माता-पिता (आनुवांशिक माता-पिता) अथवा सामान्य तौर पर व्यक्ति का वंश निर्धारित करने में भी किया जा सकता है।
2) कृषि :
- आनुवांशिकी संशोधित फसलें: आनुवांशिकी संशोधित फसलें कृषि में प्रयोग होने वाले पौधे हैं, जिसके डी.एन.ए. को आनुवांशिकी अभियांत्रिकी प्रौद्योगिकी की मदद से संशोधित किया गया है। ऐसी फसलों में एक नया लक्षण डाला जाता है जोकि इन पादप प्रजातियों में प्राकृतिक रूप से नहीं पाया जाता है। उदाहरण के लिए, बी.टी. कॉटन में बेसिलस थुरिजेनेसिस के गुणसूत्र को कपास में डालकर यह इसे कीट प्रतिरोधी बनाता है।
- जैव ईंधन – जैव-प्रौद्योगिकी के सबसे बड़े अनुप्रयोगों में से एक ऊर्जा उत्पादन क्षेत्र है। ये ईंधन पर्यावरणोनुकूल होने के साथ ही पारंपरिक ईंधन में मिलाए जाने पर उच्च क्षमता युक्त होते हैं। भारत में जठरोफा फसल का प्रयोग जैव ईंधन बनाने में किया जाता है।
- पादप एवं जीव पुनरोत्पादन - उन्नत जैव-प्रौद्योगिकी के कारण पादप एवं जीवों में कुछ खास परिवर्तन अधिक तेजी से आण्विक स्तर पर गुणसूत्रों के अति-व्यापन अथवा निष्कासन, किसी पर गुणसूत्रों के प्रवेश कराने से होता है। ज्ञातव्य है कि संकर-परागण, ग्राफटिंग और संकर-प्रजनन जैसी पारंपरिक विधियां बहुत समय लेती हैं।
- बायोफोर्टिफिकेशन: यह जैव-प्रौद्योगिकी की मदद से खाद्य फसलों में पौष्टिक गुणवत्ता को बढ़ाता है। गोल्डेन धान को बीटा-कैरोटीन और विटामिन A पूरक पदार्थों से पोषित किया जाता है।
- एंटीबायोटिक्स: पौधे का प्रयोग मानव और जीवों दोनों के लिए एंटीबायोटिक्स बनाने में किया जाता है। एंटीबायोटिक प्रोटीन को पशु भोजन में मिलाकर दे सकते हैं जिससे खर्च घट जाता है। पौधे की मदद से एंटीबायोटिक्स बनाने के कई फायदे हैं जैसे कि भारी मात्रा में उत्पादन, बड़े स्तर की अर्थव्यवस्था और शुद्धिकरण में आसानी है।
- अजैविक दबाव प्रतिरोध : बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के कारण खेती योग्य भूमि बहुत कम मात्रा में पायी जाती है, इसके चलते ऐसी फसलों को विकसित करना बहुत जरूरी है जो इन अजैविक तनावों जैसे लवणता, सूखा और तुषार को सहन कर सके। इजरायल ने सफलतापूर्वक ऐसी फसलों को विकसित किया है जो न्यून जल स्थितियों में उग सकते हैं।
3) पर्यावरण:
- बायोमेकर: बायोमेकर उस रसायन के प्रति प्रतिक्रिया देता है जो प्रदूषण प्रभाव अथवा विषैले तत्त्वों के प्रभाव हुए नुकसान के स्तर को मापने में मदद करता है।
- जैव ऊर्जा : बायोगैस, बायोमास ईंधन और हाइड्रोजन जैव ऊर्जाएं हैं। हरित ऊर्जा के अग्रणी उदाहरणों में जैविक और बायोमास उपार्जित पदार्थों से प्राप्त अपशिष्ट हैं, ये अपशिष्ट पदार्थ पर्यावरण में पैदा हुई प्रदूषण समस्याओं को दूर करने में सहायता करते हैं।
- बायोरिमेडिएशन: गैर-विषैले यौगिकों में हानिकारक पदार्थों को साफ करने की प्रक्रिया को बायोरिमेडिएशन प्रक्रिया कहते हैं। इस प्रक्रिया का प्रमुख रूप से उपयोग किसी भी प्रकार के तकनीकी सफाई में किया जाता है जो प्राकृतिक सूक्ष्मजीव का प्रयोग करते हैं।
- माइक्रोमेडिएशन
- फिटोरिमेडिएशन
- माइक्रोबियल रिमेडिएशन
- बायोट्रांसफॉरमेशन: जैविक वातावरण में घटित होने वाले वह परिवर्तन जो जटिल यौगिक को सरल गैर-विषैले पदार्थों से विषैले अथवा अन्य पदार्थ में बदलते हैं, जैवरूपांतरण प्रक्रिया कहलाती है। इसका प्रयोग विनिर्माण क्षेत्र में किया जाता है जहां विषैले पदार्थों को गौण-उत्पादों में बदला जाता है।
4) उद्योग:
- औद्योगिक किण्वन: इसका प्रयोग कोशिकाओं जैसे सूक्ष्मजीवों अथवा कोशिकाओं के घटकों जैसे एंजाइम का प्रयोग करने की प्रक्रिया है ताकि रसायन, खाद्य, विरंजक, कागज एवं गूदा, कपड़ा और जैवईंधन जैसे क्षेत्रों में औद्योगिक रूप से उपयोगी उत्पादों को निर्मित किया जाए।
- ग्रीनहाउस गैस उत्पादन से धारणीय उत्पादन की ओर जाने में प्रभावी विकास प्राप्त किया जा चुका है।
5) खाद्य प्रसंस्करण :
- किण्वन प्रक्रिया
- प्रोटीन इंजीनियरिंग– बेहतर किण्वन के लिए जिम्मेदार सूक्ष्मजीवों के लाभकारी एंजाइमों का टंकियों में सूक्ष्मजीवों के संवर्धन द्वारा बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक उत्पादन किया जाता है।
हाल में प्रगति :-
1) मानव जीनोम कार्यक्रम – राइट : एच.जी.पी.-डब्ल्यू का उद्देश्य एक सामान्य मानव गुणसूत्र (जीनोम) के समान गुणसूत्रों की श्रृंखला और उनके बीच अंतरालों का एक ब्लूप्रिंट तैयार करना है। इससे उन्नत जैवअभियांत्रिकी उपकरणों की मदद से एक कृत्रिम मानव जीनोम बनाने में सहायता मिलेगी। भारत के लिए एच.जी.पी.-डब्ल्यू तैयार करने के मुख्य फायदों में मलेरिया, डेंगू और चिकुनगुनिया जैसे रोगों के नए समाधान मिलना शामिल है। एक अन्य क्षेत्र जहां एच.जी.पी.-डब्ल्यू स्वास्थ्य देखभाल में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है, वह वैक्सीन विकास है। वैक्सीन बनाने के पारंपरिक तरीके में समय और पैसा दोनों ही बहुत खर्च होते हैं। संश्लेषित विषाणु पैदा करके इस प्रक्रिया को कई गुना तेज किया जा सकता है और फिर उसका वैक्सीन विकास में उपयोग कर सकते हैं।
2) पृथ्वी जीनोम कार्यक्रम : यह अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों का एक परिसंघ है जो पृथ्वी पर पिछले 10 सालों की अवधि में प्रत्येक बहुकोशिकीय जीवों के गुणसूत्रों का अनुक्रम, सूचीकरण और लक्षण निर्धारित करने के कार्यक्रम पर कार्य करेगा और तीन चरणों में 15 लाख प्रजातियों के अनुक्रम तैयार करेगा।
ई.जी.पी. से व्यापक गुणसूत्रीय श्रृंखला बनाने में मदद मिलेगी और जाति, वर्ग और कुल के बीच क्रांतिकारी संबंध को उजागर करने में मदद मिलेगी और जिससे जीवन की एक डिजिटल लाइब्रेरी तैयार होगी।
3) त्रि-संतति संतान: तीन संतति संतान, मानव शिशु है जो एक पुरुष और दो महिलाओं के आनुवांशिक पदार्थ से पैदा होता है, इसमें सहायक प्रजनन तकनीक, विशेषतकर माइटोकॉन्ड्रियल हस्तांतरण तकनीक और तीन व्यक्ति विट्रो फर्टीलाइजेशन का प्रयोग होता है।
4) जी.एम. सरसों : धारा मस्टर्ड हाइब्रिड -11 एक आनुवांशिकी संशोधित (जी.एम.) संकर सरसों है। संकर पौधे को आमतौर पर एक ही प्रजाति के दो आनुवांशिक रूप से भिन्न पौधों में मेल कराकर प्राप्त किया जाता है। पहली पीढ़ी की संतानों की व्यक्तिगत पैदावार क्षमता मूल पीढ़ी की तुलना में अधिक होती है। लेकिन सरसों में कपास, मक्का अथवा तंबाकू की भांति कोई प्राकृतिक संकरण तंत्र नहीं होता है। इसका कारण है कि इसके फूलों में दोनों मादा (जायांग) और नर (पुष्पांग) प्रजनन अंग होते हैं, जो पौधे को प्राकृतिक रूप से स्वःपरागण में सक्षम बनाते हैं।
वैज्ञानिकों में सरसों में जी.एम. तकनीक का प्रयोग करके एक जीवित संकरण तंत्र विकसित किया है। परिणामी जी.एम. सरसों संकर पादप में, किए गए दावे के अनुसार देश में वर्तमान उगायी जाने वाली सर्वश्रेष्ठ किस्म ‘वरुणा’ से 25-30% अधिक पैदावार होगी। यह तकनीक दिल्ली विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिप्युलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (सी.जी.एम.सी.पी.) द्वारा विकसित की गयी है।
5) जीन थेरेपी : गुणसूत्र उपचार यानि जीन थेरेपी का विकास कोशिकाओं में खराब गुणसूत्रों के स्थान पर गुणसूत्रीय पदार्थ समाविष्ट करने अथवा लाभदायक प्रोटीन बनाने के लिए किया गया है। इस तकनीक की मदद से चिकित्सक सिस्टिक फिब्रोसिस, हीमोफीलिया, मांसपेशीय कुपोषण, सिकिल सेल एनीमिया, बड़ी-B कोशिका लिम्फोमा आदि रोगों को ठीक कर सकते हैं।
6) स्टेम सेल उपचार: स्टेम सेल में मानव शरीर में प्रत्येक उत्तक के निर्माण की क्षमता है, इसलिए उत्तक पुनरोत्पादन अथवा मरम्मत में भविष्य में उपचार के लिए इसमें बहुत अधिक संभावना है। इन्हें व्यापक तौर पर प्लूरीपोटेंट स्टेम सेल और मल्टीपोटेंट स्टेम सेल में बांट सकते हैं। प्लूरीपोटेंट स्टेम सेल का यह नाम इसलिए है क्योंकि ये शरीर में सभी प्रकार की कोशिकाओं में विभाजित होने की क्षमता रखते हैं जबकि मल्टीपोटेंट स्टेम सेल किसी खास गुणसूत्र श्रृंखला अथवा केवल किसी खास ऊत्तक की कोशिकाएं बन सकते हैं।
सरकारी नीतियां
राष्ट्रीय जैवतकनीकी विकास रणनीति 2015-2020 (NBDS)
- जैव-प्रौद्योगिकी विभाग ने सितम्बर 2007 में प्रथम राष्ट्रीय जैव-प्रौद्योगिकी विकास रणनीति की घोषणा की थी जिसने इस क्षेत्र में अत्यधिक अवसरों की एक झलक दिखलाई थी।
- इसके बाद, एन.बी.डी.एस. को दिसम्बर 2015 में शुरु किया गया जिसका उद्देश्य भारत को विश्व स्तर का एक जैवनिर्माण केन्द्र बनाना था।
- इससे एक प्रमुख मिशन शुरु हुआ, जिसे नए जैव-प्रौद्योगिकी उत्पादों के निर्माण के लिए जरूरी निवेश का समर्थन प्राप्त था, इससे शोध एवं विकास के लिए एक मजबूत बुनियादी ढांचे का विकास हुआ और इसने व्यवसायीकरण तथा भारत के मानवों को सशक्त बनाया।
- यह मिशन जैवप्रौद्योगिकी औद्योगिक अनुसंधान सहयोग परिषद (BIRAC) द्वारा कार्यान्वित होगा। मिशन में पांच वर्षों के लिए भारत सरकार द्वारा 1500 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया गया है जिसमें विश्व बैंक कार्यक्रम लागत का 50% योगदान दे रहा है।
- एन.डी.बी.एस. के मुख्य तत्त्वों में बढ़ती जैविक अर्थव्यवस्था के साथ पर्यावरण की जानकारी को पुनर्जीवित करना है और समावेशी विकास के लिए जैवप्रौद्योगिकी उपकरणों पर ध्यान देना है।
रणनीति –
- एक कुशल कार्यबल का निर्माण करना तथा वैज्ञानिक अध्ययनों की मूलभूत, विषयात्मक और अंतर-विषयात्मक शाखाओं में शोध सुविधाओं को बेहतर बनाना है।
- नवाचार, ट्रांसलेशनल क्षमता और उद्यमिता को पोषित करना।
- एक पारदर्शी, दक्ष और वैश्विक रूप से सर्वश्रेष्ठ नियामक तंत्र एवं संचार रणनीति सुनिश्चित करना।
- प्रौद्योगिकी विकास और वैश्विक भागीदारी के साथ पूरे देशभर में ट्रांसलेशन नेटवर्क तैयार करना।
- वर्ष 2025 तक 100 बिलियन अमरीकी डॉलर के लक्ष्य की चुनौती को प्राप्त करने के लिए भारत को तैयार करना।
- चार प्रमुख मिशन – स्वास्थ्य देखभाल, खाद्य एवं पोषण, स्वच्छ ऊर्जा और शिक्षा शुरु करना।
- जीव विज्ञान और जैव-प्रौद्योगिकी शिक्षा परिषद का गठन करके मानव पूंजी का निर्माण करने के लिए एक केन्द्रित तथा रणनीतिक निवेश।
राष्ट्रीय बायोफार्मा मिशन
यह बायोफार्मास्युटिकल्स के खोज अनुसंधान से उनके शीघ्र विकास को बढ़ाने के लिए एक औद्योगिक-शैक्षिक सहयोगी मिशन है।
विश्व बैंक द्वारा समर्थित इनोवेट इन इंडिया (i3) कार्यक्रम के तहत इस मिशन का उद्देश्य इस क्षेत्र में उद्यमिता और स्वदेशी विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है। इस मिशन का ध्यान केन्द्रित है –
- नई वैक्सीन, बायोथेरिप्यूटिक, नैदानिक और चिकित्सीय युक्तियों का विकास करना जो रोगों की बढ़ती संख्या को कम करे।
- अलग-थलग उत्कृष्टता केन्द्रों (शैक्षणिक संस्थानों) को साथ लाना, क्षेत्रीय क्षमताओं में वृद्धि करना और वर्तमान जैवसमूह (बायो-क्लसटर) नेटवर्क क्षमताओं को मजबूत करने के साथ-साथ आउटपुट की गुणवत्ता एवं मात्रा को बढ़ाना।
- अगले पांच सालों में 6-10 नए उत्पाद देना और अगली पीढ़ी के कौशल के लिए कई समर्पित केन्द्रों का निर्माण करना।
- उत्पाद सत्यापन के लिए प्लेटफॉर्म तकनीकें विकसित करना, नैदानिक प्रयोग नेटवर्क मजबूत करने के लिए संस्थानों को मजबूत करना, नए उत्पादों के लिए आंशिक गैर-जोखिम को बढ़ावा देना और बायोएथिक्स, बायोइनफॉरमेटिक्स आदि जैसे उभरते क्षेत्रों में क्षमताएं विकसित करना।
- प्रारंभिक ध्यान एच.पी.वी., डेंगू के लिए वैक्सीन और कैंसर के लिए बायोसिमिलर्स, मधुमेह और रुमेटॉइड आर्थराइटिस और चिकित्सीय युक्तियां एवं निदानों पर होगा।
Introduction
It is the application of science in which we study the use of organisms, biological processes, or systems to manufacture products aims to improve the quality of human life.
Biotechnology and Its Applications
Types of Biotechnology
Green Biotechnology
- Applied to agricultural processes.
- Three main areas of application are Plant tissue culture; Plant genetic engineering and plant molecular marker-assisted breeding.
- Biotech is used to make plants pest and drought tolerant.
- BT Cotton is an example of bollworm tolerant plant. It is also a transgenic plant.
Red Biotechnology
- Concerned with medical sciences, development of innovative drugs and treatment.
- Application: Productions of vaccines and antibiotics, regenerative therapies, gene therapy, stem cell therapy etc. are few applications of Red biotech.
Blue Biotechnology
- Use of sea resources marine and freshwater organisms to create products and industrial applications.
White Biotechnology
- Applied to industrial processes.
- Using enzymes as industrial catalysts, usage of moulds, bacteria, yeast etc to produce various goods are few examples of White biotechnology.
Yellow Biotechnology
- Biotechnology with insects.
- It also refers to the use of biotechnology in food production.
Gray Biotechnology
- Application of Biotechnology to environmental applications, maintenance of biodiversity and removal of pollutants.
Brown Biotechnology
- Related to the management of Arid Zone and Deserts
- Creation of drought-resistant seeds, natural resources management, the creation of agricultural techniques suited to arid landscape etc. are few examples of Brown biotech.
Violet Biotechnology
- Related to law, ethical and philosophical issues around biotechnology
Dark Biotechnology
- Related to bioterrorism, biological weapons and biowarfare which use microorganisms and toxins to cause diseases, death and disability.
Application of Biotechnology
- Medicine
- Biopharmaceuticals
- Gene Therapy
- Pharmacogenomics
- Genetic testing
- Agriculture
- Genetically modified crops
- Biofuels
- Plant and animal reproduction
- Biofortification
- Antibiotics
- Abiotic Stress Resistance
- Environment
- Biomarker
- Bioenergy
- Bioremediation
- Mycoremediation
- Phytoremediation
- Microbial remediation
4. Biotransformation
- Industry
- Food Processing
- Fermentation process
- Protein engineering
Recent Developments
- Human Genome Project
- Three parents baby
- GM Mustard
- Gene Therapy
- Stem Cell Therapy
Government Policies
- National Biotechnology Development Strategy 2015-2020 (NBDS)
- National Biopharma Mission
Please Note:
If you have more information, or if you feel anything wrong then comment and tag me immediately So, I can edit or add new information.

Thank you....
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